COSMOS
by Carl Sagan
About the book
क्या कभी आपने रात में आसमान की ओर देखकर सोचा है कि इस दुनिया के उस पार क्या होगा? बचपन से लेकर बड़े होने तक, आउटर स्पेस के सब्जेक्ट ने हमें हमेशा आकर्षित किया है. फिर भी हम स्टार्स, प्लेनेट्स और गैलेक्सीज़ के बारे में कितना कम जानते हैं. ये समरी आपको यूनिवर्स की हिस्ट्री के बारे में और उसमें इंसान ने जो थोड़ा सा वक्त बिताया है, उसके बारे में बताएगी.
ये समरी किसे पढ़नी चाहिए?
- साइंस पसंद करने वालों को
- जो एस्ट्रोनॉमी में इंटरेस्ट रखते हैं
- जो दुनिया के बारे में अपनी नॉलेज बढ़ाना चाहते हैं
ऑथर के बारे में
कार्ल सेगन एक एस्ट्रोनॉमर और साइंस के बेस्ट सेलिंग और पॉपुलर ऑथर हैं. कार्ल ने 26 की उम्र में एस्ट्रोनॉमी में पी.एच.डी. की थी और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर बने. उन्हें ज्यादा पहचान मिली थी 1980 के अपने टीवी सीरीज़ "कॉसमॉस" से जिसे 60 देशों में आधे बिलियन लोगों द्वारा देखा गया था. कार्ल ने 'पेल ब्लू डॉट' के साथ-साथ कई किताबें लिखी हैं.
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इंट्रोडक्शन
1976 में वाइकिंग स्पेसक्राफ्ट मार्स पर उतरा था. इसने हमारे पड़ोसी रेड प्लेनेट मार्स के बारे में काफी जानकारी इकट्ठा की लेकिन मीडिया को ये खबर कुछ ख़ास इम्पोर्टेट नहीं लगी. उल्टा वो उन एस्ट्रोनोमर्स को क्रिटिसाईज करने लगे जो बोल रहे थे कि मार्स की जमीन blue नहीं बल्कि पिंकिश येलो है. कई कंपनियों ने कहा कि अगर मार्स अर्थ से इतना ज्यादा अलग है तो उसे इतनी इम्पोर्टस देने का फायदा क्या है. लेकिन एक एस्ट्रोनॉमर जो इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था उसे आम जनता पर ज्यादा भरोसा था. उसका मानना था कि लोगों को स्पेस में इंटरेस्ट आने लगेगा जैसे कि आज तक होता आया है. वो चाहते थे कि लोग स्पेस से जुड़ी information ईज़िली एक्सेस कर सके.
और इस सबका नतीजा निकला कॉसमॉस के रूप में. एस्ट्रोनॉमर कार्ल सेगन ने वाइकिंग लैंडिंग के बाद इसी नाम की एक बुक और टीवी सीरीज़ पर काम किया. 1980 में कॉसमॉस रिलीज़ हुई जो 200 मिलियन लोगों तक पहुँच गई थी, जो उस वक़्त दुनिया की 5% आबादी था.
इस समरी में आप एस्ट्रोनॉमी और स्पेस की हिस्ट्री और फ्यूचर के बारे में जानोगे. आप पिछले 2000 सालों में हुए उन महान साइंटिस्ट्स के बारे में जानोगे जिन्होंने स्पेस, अर्थ और लाइफ जैसे सब्जेक्ट्स पर डिसकवरीज़ की थी. साथ ही आपको स्टार, कॉमेट और गैलेक्सीज़ के बारे में भी जानने का मौका मिलेगा.
सदियों पहले ह्यूमन सिविलाईजेशन मौसम का अनुमान लगाने, समुद्री यात्रा करने और फ्यूचर का पता लगाने के लिए रात में आसमान को देखकर प्रेडिक्शन किया करते थे. स्पेस में कुछ तो ऐसा रहस्य जरूर है जो सदियों से इंसान को अपनी तरफ attract करता आया है और ये समरी इसी रहस्य से पर्दा उठाने की छोटी सी कोशिश है.
The Shores of The Cosmic Ocean
हमारा प्लेनेट अर्थ, सन और बाकी दूसरे ऑब्जेक्ट्स जो हमें स्पेस में नज़र आते है, एक कॉसमॉस यानी ब्रह्मांड के अंदर आते है. ये इतना पुराना और विशाल है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते. इस बड़े से कॉसमॉस में हमारा प्लेनेट धूल के एक कण के बराबर है. इसलिए इतना समझ लीजिए कि धरती पर जो भी लड़ाईयाँ, जंग या बहस छिड़ी रहती है उसका इस विशाल अंतरिक्ष के सामने कोई महत्व ही नहीं है. इस कॉसमॉस का साइज़ हम miles या किलोमीटर में नहीं नाप सकते बल्कि इसे measure करने के लिए लाईट ईयर का इस्तेमाल होता है. लाईट एक साल में जितनी दूरी तय करती है उस दूरी को लाईट ईयर बोलते है. जैसे कि सूरज की रौशनी को धरती पर पहुँचने में 8 मिनट लगते है.
कॉसमॉस पूरी तरह से एम्प्टी स्पेस यानी ख़ाली जगह है जहाँ कुछ यूनीक और अनोखे मैटर्स भी पाए जाते है जैसे गैस, डस्ट और रॉक्स वगैरह. इसमें लाईट की पतली और धुंधली लाइन है जो दिखाती है कि वहाँ दुनिया हो सकती है जिन्हें गैलेक्सी कहते हैं. कुछ गैलेक्सीज़ अकेले travel करती है तो कुछ साथ मिलकर.
हम गैलेक्सीज़ के एक झुण्ड में रहते है जिसे एस्ट्रोनॉमर्स ने "लोकल ग्रुप" का नाम दिया है. हमारा सबसे पुराना पड़ोसी हमसे करीब 2 मिलियन लाईट ईयर दूर है. ये एक गैलेक्सी है जिसे M13 कहते है, जिसे हम एक स्टार के पैटर्न के रूप में देख सकते है और इसका नाम है एंड्रोमेडा.
हम जिस गैलेक्सी में रहते है, उसका नाम है मिल्की वे. इसका सेंटर ब्राईट है और इसके चारों तरफ से हल्के "आर्म्स" या हाथ निकलता हुआ नज़र आता है. इन्हीं हाथों में से एक के कोने पर हमारी पृथ्वी है. पुराने ज़माने में ये माना जाता था कि अर्थ कॉसमॉस के सेंटर में है. लेकिन असल में हम अपनी गैलेक्सी के सेंटर पॉइंट से भी करीब 40,000 लाईट ईयर दूर है.
मिल्की वे में जो स्टार्स है वो आमतौर पर 2 या उससे ज्यादा का ग्रुप बनाते है. कुछ स्टार्स तो एक-दूसरे के इतने करीब है कि एक-दूसरे के चारों तरफ स्पिन करते वक्त आपस में मैटर एक्सचेंज कर लेते है. जबकि इसके मुकाबले हमारे सूरज जैसा लोनली स्टार बहुत कम पाया जाता है.
लेकिन कॉसमॉस में हमारे अर्थ जैसा कुछ भी यूनीक नहीं है. हमारे पास अपना एटमोस्फेयर है जिसमें नाईट्रोज़न है और इसका सर्फेस लिक्विड वाटर से ढका हुआ है. हमारी धरती, आसमान और समुद्र जीवन से भरपूर है. हमने स्पेस का एक बड़ा हिस्सा एक्सप्लोर किया है. हमें ये पता है कि इस पूरे कॉसमॉस में सिर्फ हमारी इस छोटी सी धरती पर ही जीवन मौजूद है.
पहला इंसान जिसने हमारे प्लेनेट की लिमिट को समझा था वो थे एराटोस्थनीज (Eratosthenes). वो एक मैथेमेटिशियन, हिस्ट्रोरियन, जियोग्राफ़िक, पोएट और एस्ट्रोनॉमर थे.
एक दिन एराटोस्थनीज टेम्पल ऑफ़ सायन (सायन का मंदिर) पर एक पुरानी किताब पढ़ रहे थे जिसमें लिखा था कि 21 जून के दिन दोपहर के वक्त उस मंदिर की परछाई गायब हो जाएगी और सूरज का reflection पास के एक छोटे से कुंए में दिखेगा. इसका मतलब ये हुआ कि सूरज का पोजीशन सायन के ठीक ऊपर था.
एक आम इंसान के लिए ये एक मज़ेदार फैक्ट हो सकता है लेकिन एराटोस्थनीज ने फैसला किया कि वो इस आईडिया को अपने शहर alexandria में टेस्ट करेंगे. 21 जून दोपहर के वक्त उन्होंने नोटिस किया कि alexandria की सारी ईमारतों की परछाई अभी भी नज़र आ रही थी.
अगर धरती फ्लैट होती तो दोपहर के वक्त सायन और alexandria की ईमारतों की परछाईयां नज़र नहीं आती लेकिन परछाई का ये फ़र्क ये साबित करता था कि धरती गोल है. एराटोस्थनीज ने ये measure किया कि परछाई में 7 डिग्री का फ़र्क है. उन्हें सायन से alexandria की दूरी भी मालूम थी. इन चीज़ों के बेस पर उन्होंने कैलकुलेट किया कि अर्थ का सर्कमफेरेंस 40,000 किलोमीटर है और आज हमें ये पता है कि अर्थ का सर्कमफेरेंस इस बात पर डिपेंड करता है कि आप कहाँ से इसे measure कर रहे है. लेकिन ये हमेशा 40,007 से 40,075 किलोमीटर के बीच ही आता है. इसका मतलब हुआ कि एराटोस्थनीज की कैलकुलेशन बिल्कुल सटीक थी, जबकि उनके पास उन दिनों के बेसिक रूलर्स और compass वगैरह ही रहे होंगे, इसके बावजूद आज से 2200 साल पहले उनका अर्थ के साइज़ को measure करना बहुत बड़ी अचीवमेंट मानी जाएगी.
इतिहास गवाह है कि साइंटिस्ट्स हमेशा एडवेंचरर्स की मदद और उन्हें इंस्पायर करते आए है. एराटोस्थनीज के टाइम पर भी ये बात लागू होती थी इसलिए कई जाँबाज़ सेलर्स (sailors) उनकी थ्योरी पर भरोसा करते हुए धरती के हर एक कोने को एक्सप्लोर करने निकल पड़े. उस वक्त नए कोंटीनेंट की तलाश करना एक नई दुनिया की तलाश करने जैसा समझा जाता था. जियोग्राफर स्ट्रैबो ने एक बार समुद्र के पार "हैबिटेबल अर्थ" यानी रहने लायक अर्थ को डिस्कवर करने के बारे में लिखा था.
आज अर्थ में बहुत कम सीक्रेट्स बचे है डिस्कवर करने के लिए. अब कोई और कोंटीनेंट नहीं बचा डिस्कवर करने के लिए और ना ही कोई छुपी हुई सिविलाईजेशन है. लेकिन आज भी एराटोस्थनीज और स्ट्रैबो की आत्मा हमारे आस-पास मौजूद है. आज इंसान कॉसमॉस पर नज़र गड़ाए हुए है. हम आज भी नई दुनिया की तलाश में जुटे है जो कहीं दूर तारों में बसी हुई है.
DNA: The Molecule of Life
1185 में जैपेनीज़ सम्राट एक 7 साल का बच्चा था जिसका नाम था एंटोकू. उसकी सेना समुराई के एक कुनबे से बनी थी जिसे हेइक कहा जाता था. एक और समुराई ग्रुप था गेंजी जो सम्राट का तख्त हासिल करना चाहता था. इन दोनों के बीच जापान में राज करने के लिए कई जंग लड़ी गई.
एक दिन समुद्र के किनारे डेनो-उरा नाम के शहर में सम्राट पर हमला हुआ. हेइक की सेना हार गई और उनके ज्यादातर आदमी मारे गए. सम्राट की दादी नहीं चाहती थी कि सम्राट को गेंजी अपने कब्ज़े में ले ले इसलिए उन्होंने उसे अपनी बाहों में लिया और समुद्र में कूद पड़ी और छोटे सम्राट के साथ ही जापान में हेइक का शासन भी खत्म हो गया.
लेकिन डेनो-उरा के मछुवारे मानते है कि हेइक सिपाहियों की आत्मा आज भी वहां मौजूद है. वो इसलिए क्योंकि उस इलाके में क्रैब यानी केकड़ों की एक ख़ास नस्ल है. हेइक केकड़ों के खोल (shell) शैल जो पैटर्न बना हुआ है वो एक ऐसे समुराई के चेहरे जैसा लगता है जो गुस्से में है.
तो ऐसा कैसे हुआ कि जहाँ इतनी बड़ी जंग लड़ी गई वहां केकड़ों की एक जाती समुराई के चेहरे जैसी दिखने लगी? ऐसा लगता है सारी गलती इंसान की है. केकड़ों की पीठ पर तरह-तरह के निशान होते हैं. मान लीजिए कि एक केकड़े की खोल पर ऐसे निशान बने हुए हैं जो देखने में इंसान का चेहरा जैसा लगता है. मछुवारे इन केकड़ों को डेनो-उरा की लड़ाई से पहले भी समुद्र में वापस फेंक दिया करते थे. वो इसलिए क्योंकि आप कोई ऐसी चीज़ नहीं खाना चाहोगे जिस पर इंसान का चेहरा बना हो. जबकि दूसरे पैटर्न्स वाले केकड़ों को पकड़कर खा लिया जाता था. तो इस तरह धीरे-धीरे इंसानी चेहरे जैसे निशान वाले केकड़े बचते चले गए और उनकी संख्या बढ़ती चली गई.
बाद में ये भी देखा गया कि कुछ केकड़ों के निशान जापानी चेहरों से मिलते जुलते है. उन केकड़ों में से कुछ के पैटर्न समुराई के चेहरे जैसे थे. हेइक केकड़े ईवोल्व हुए तो उनकी खोल में ऐसे निशान बने जो एक गुस्सैल समुराई जैसे दिखते थे. ये पैटर्न केकड़ों ने अपनी मर्जी से नहीं बनाए थे बल्कि ये इंसान द्वारा लिए गए फ़ैसले की वजह से बने है.
ऊपर का प्रोसेस आर्टिफिशियल सिलेक्शन कहलाता है. ये हम चारों तरफ देख सकते है. अब जैसे कॉर्न का example ले लो. पहले ये आपके अंगूठे जितना हुआ करता था. आर्टिफिशियल सिलेक्शन की वजह से ही कॉर्न का साइज़ बढ़ा होता चला गया. इंसान में इतनी ताकत है कि वो ख़ास characteristic यानी ख़ासियत सिलेक्ट करके एक पूरी स्पीशीज को ही चेंज कर सकता है. नेचर में भी यही एबिलिटी है. इसे नैचुरल सिलेक्शन कहते है, जो थ्योरी ऑफ़ ईवोल्यूशन के पीछे का प्रिंसिपल है.
लेकिन ईवोल्यूशन में एक बड़ी प्रॉब्लम है. अगर सारी लाइफ ईवोल्यूशन का ही प्रोडक्ट है तो पहला ऑर्गेनिज्म किससे ईवोल्व हुआ था? इसे स्टडी करने के लिए हमें 4 बिलियन साल पीछे लौटना होगा. हमारा एटमोस्फीयर मेनली हाइड्रोजन से बना हुआ था. ऐसी कोई चीज़ नहीं थी जो अर्थ को सन की अल्ट्रावाएलेट लाईट से बचा सके. तब अक्सर तूफ़ान आया करते थे और volcano यानी ज्वालामुखी का भी विस्फ़ोट होता था.
ये एनवायरनमेंट केमिकल रिएक्शन के लिए एकदम परफेक्ट था और ऐसे ही एक रिएक्शन ने एक्स्ट्राऑर्डिनरी मॉलिक्यूल प्रोड्यूस किया. ये मॉलिक्यूल बाकि केमिकल्स यूज़ करके अपनी खुद की कॉपी क्रिएट कर सकता था. ये मॉलिक्यूल डीएनए का पहला फॉर्म था, यानि मॉलिक्यूल ऑफ़ लाइफ.
डीएनए 4 केमिकल से मिलकर बना है जिन्हें न्यूक्लियोटाइड (nucleotides) कहा जाता है. हर जानवर के डीएनए में उस स्पीशीज़ को क्रिएट करने का इंस्ट्रक्शन होता है. इंसान के डीएनए मॉलिक्यूल में 6 बिलियन न्यूक्लियोटाइड के पार्ट्स होते है और इन न्यूक्लियोटाइड में जो चेंजेस आते है, उसी से ईवोल्यूशन होता है.
शरुआती डीएनए मॉलिक्यूल्स ने धीरे-धीरे एक साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने सर्वाइवल के चांस को इम्पूव करने के लिए ग्रुप्स बनाए जिन्हें "सेल्स" कहते है. 3 बिलियन साल पहले मल्टीपल सेल्स ने साथ मिलकर काम करना शुरू किया था. वो 100 ट्रिलियन से भी ज़्यादा सेल्स के साथ इंसान बनाने जा रहे थे.
अर्थ पर सबसे पहला organism यानी जीव प्लांट्स थे. 1 बिलियन साल पहले उन्होंने हमारी दुनिया को बड़े पैमाने पर बदल दिया था. ऑक्सीजन ने हाइड्रोजन की जगह ले ली थी जिसने एटमोस्फियर पर राज किया. हाइड्रोजन से अलग, ऑक्सीजन कई आर्गेनिक मॉलिक्यूल्स के साथ रियेक्ट करता है. जिस गैस ने हमें जीवन दिया उसने अर्थ पर मौजूद कई शुराती लाइफ फॉर्म्स का खात्मा कर डाला था.
कई सालों तक अर्थ पर समुद्री पौधों का राज रहा जिन्हें algae कहा जाता है. लेकिन 600 मिलियन साल पहले एक घटना घटी थी जिसे कैंब्रियन एक्सप्लोजन यानी विस्फ़ोट कहा जाता है. उसके बाद से मछली और कीड़ों की प्रजाति बनी, जो बाद में पक्षियों, dinosaur और बड़े मैमल्स में ईवोल्व हुए.
देखा जाए तो इंसान अर्थ पर अभी नए-नए जन्मे हैं. हम अर्थ पर 10 मिलियन साल पहले ही आए है लेकिन अर्थ पर हमें बाकि सारे लाइफ फॉर्म्स के साथ एक ही चीज़ बांधती है. हम सब एक ही कॉमन मॉलिक्यूल से बने है जिसने 4 बिलियन साल पहले खुद को कॉपी करना सीख लिया था.
Heaven and Hell
अर्थ आमतौर पर एक शांत जगह है. हम में से ज्यादातर लोग बगैर कोई बड़ा या भयानक नैचुरल डिजास्टर एक्सपीरिएंस किए मर जाते है. लेकिन कॉसमॉस एक खतरनाक जगह है. आउटर स्पेस में ऐसे एविडेंस है जो पूरे दुनिया के नाश हो जाने के बारे में ईशारा करते है.
अर्थ ने भी ऐसी छोटी-मोटी घटनाएँ एक्सपीरिएंस किए हैं. 1908 में एक बड़ा सा आग का गोला सेंट्रल साइबेरिया के ऊपर से उड़ता हुआ नज़र आया. जब ये फटा तो हजारों पेड़ जल गए और जंगल का पूरा इलाका एकदम साफ़ और ख़ाली हो गया. इसने इतनी धुल उड़ाई थी कि यूरोप के ज़्यादातर हिस्से में अँधेरा छा गया था. इस घटना को टुन्गुसका ईवेंट के नाम से जाना जाता है.
ये जादुई आग का गोला जो आसमान से गिरा ये क्या था? असल में ये बर्फ़ से बना एक बॉल था जिसे एस्ट्रोनोमर्स कॉमेट कहते है. कॉमेट ज्यादातर जमे हुए पानी, मीथेन और एमोनिया से बने होते है.
कॉमेट अक्सर अर्थ के एटमोस्फियर में आकर जल जाते है. अपनी स्पीड और एनर्जी की वजह से ये प्रोसेस फायरबॉल यानी आग का गोला और एक्सप्लोजन क्रिएट करता है. टुन्गुसका कॉमेट का वेट लगभग 1 मिलियन टन था और ये 30 किलोमीटर पर सेकंड की स्पीड से ट्रेवल कर रहा था. लेकिन इसके कोर से कुछ ही डस्ट पार्टिकल्स अर्थ पर गिरे थे.
स्टार और प्लेनेट आसमान में हमेशा स्थिर रहते है. फिर भी कभी-कभी हमें रात में एक अजीब सी सफ़ेद लाइन नज़र आती है. ये वो कॉमेट होते है जो बहुत दूर सन के पास से गुजरते है. एन्शियेंट एस्ट्रोनोमर्स इतने हैरान होते थे कि उन्होंने कॉमेट के कई मतलब निकाले थे. इन्हें अक्सर जंग, डिजास्टर या फिर भगवान् के प्रकोप के तौर पर देखा जाता था.
हैली"स कॉमेट हर 75 साल में अर्थ के पास से गुजरता है. 1066 में इसे विलियम द कॉन्करर के इंग्लैण्ड पर कब्ज़ा करने से जोड़कर देखा गया. हैली"स कॉमेट 1466 में दोबारा नज़र आया जब europeans की तुर्कों से लड़ाई चल रही थी. europeans को ये लगता था कि भगवान् उनके दुश्मन को सपोर्ट कर रहे हैं.
टिपिकली, कॉमेट एक स्टार के चारों तरफ एक बड़े ऑर्बिट में ट्रेवल करते है, लेकिन ये ऑर्बिट प्लेनेट्स की तरह रेगुलर नहीं होते इसलिए कॉमेट अक्सर स्पेस में किसी बड़े ऑब्जेक्ट के साथ टकरा जाते है. आमतौर पर इस टकराव की वजह से ज्यादा नुक्सान नहीं होता है लेकिन ये काफी बड़ा निशान छोड़ जाते है क्योंकि कॉमेट का सेंटर रॉक या मेटल का बना होता है.
मून उस डैमेज़ का एक सबूत है जो कॉमेट कर सकता है. इसके सर्फेस पर करीब 10,000 गड्ढे देखे जा सकते है. ये बहुत हद तक मुमकिन है कि किसी कॉमेट का सबसे हालिया इम्पैक्ट अर्थ से देखा गया हो.
कैंटबरी में जर्वेज़ नाम के एक राईटर ने 5 ब्रिटिश मोंक्स की एक कहानी बताई थी. उन्होंने 25 जून, 1178 में मून से एक "जलती हुई मशाल" उड़ती हुई देखी. मॉडर्न एस्ट्रोनोमेर्स इस बात पर सहमत हुए कि एक कॉमेट का इम्पैक्ट ठीक ऐसा ही लगता होगा. मून के सर्फेस को स्टडी करना ज़र्वेज़ की थ्योरी को भी सपोर्ट करता है.
लेकिन मून की स्टोरी एक सवाल उठाती है. अर्थ मून के बहुत करीब है तो अर्थ पर ऐसे बड़े-बड़े गड्ढे क्यों नहीं है? जवाब सिंपल है, अर्थ कॉमेट से उतनी बार ही टकराया होगा जितनी बार मून टकराया है. लेकिन हमारे प्लेनेट का नेचर मून से एकदम अलग है. हमारा एटमोस्फियर मोटा है जो ज्यादातर कॉमेट को जला देता है. अर्थ का सर्फेस बहते हुए पानी से ढका हुआ है जो कॉमेट के सारे निशान मिटा देता है. रेत लगातार उड़ती रहती है और धीरे-धीर पहाड़ बनते रहते है. कई मिलियन सालों में ये प्रोसेस बड़े से बड़ा गड्डा भी मिटा सकते है.
Travellers' Tales
15 -17 सेंचुरी एक्सप्लोरेशन और एनलाईटमेंट यानी आत्म-ज्ञान का दौर था. कई यूरोपियन देश कॉंफिडेंट थे कि वो अर्थ के हर कोने तक पहुँच सकते है. इसलिए वो सीखने के लिए, ट्रेड करने के लिए और फॉरेन देशों के साथ इंटरएक्ट करने के लिए travel किया करते थे.
डच रिपब्लिक ग्रेट यूरोपियन एक्सप्लोरेशन में से एक लीडर था. इसने 1581 में खुद को स्पेनिश साम्राज्य से इंडीपेंडेंट यानी स्वतंत्र डिक्लेयर कर दिया था. लेकिन एक छोटे देश के तौर पर हॉलैंड को वो सारी मदद चाहिए थी जो उसके बचे रहने के लिए जरूरी थी. इसलिए डच रिपब्लिक ने हर तरह के लोगों के आईडियाज़ को वेलकम और रिस्पेक्ट किया.
कई दूसरे देशों ने ग्रेट थिंकर्स, जो कुछ हटकर ओपिनियन रखते थे, को बहुत परेशान किया. जैसे example के लिए, गैलिलियो गैलिली पहले शख्स थे जिन्होंने कहा था कि अर्थ सन के चारों तरफ घूमती है. इसे सुनकर इटली के कैथोलिक चर्च ने गैलीली को टार्चर करने और जान से मारने की धमकी दे डाली. इसलिए डच रिपब्लिक ने उन्हें लीडन यूनिवर्सिटी (University of Leiden ) में प्रोफ़ेसर बनने के लिए इनवाईट किया.
हॉलैंड की यूनीक policy ने उसे एक ग्लोबल सुपरपावर बनाया. फिलोसफी के पायोनियर, जॉन लोके और रेने डेसकार्टेस (John Locke and René Descartes) नीदरलैंड्स में काम करते थे. डच साइंटिस्ट लीउवेनहोक (Leeuwenhoek) ने माइक्रोस्कोप का इन्वेंशन किया था और ह्यूजेंस (Huygens) ने टेलीस्कोप को एकदम परफेक्ट बनाया था. उस टाइम का बेस्ट आर्ट डच पेंटर्स वर्मीर और रेम्ब्रांट (Dutch painters Vermeer and Rembrandt) के द्वारा बनाया गया था. 17th सेंचुरी डच रिपब्लिक का सबसे गोल्डन या गौरवशाली दौर था.
इस दौर में एराटोस्थनीज की तरह ही एक ग्रेट साइंटिस्ट हॉलैंड में पैदा हुए. क्रिश्चियन ह्यूजेंस, साइंस, लेंगुएज, मैथ्स, म्यूजिक, लॉ और आर्ट में जीनियस थे. इसके अलावा उनमें कॉसमॉस के बारे में जानने की गहरी क्यूरियोसिटी भी थी.
ह्यूजेंस पहले इंसान थे जिन्होंने दूसरे प्लेनेट का साइज़ केलकुलेट किया था. उन्होंने पावरफुल टेलीस्कोप बनाया जो मार्स और वीनस के आसमान का सर्फेस observe कर सकता था. ह्यूजेंस ने saturn planet के रिंग्स भी डिस्कवर किए. उन्होंने ये सब 20 की उम्र में अचीव कर लिया था.
डच सेलर्स को ह्यूजेंस की वजह से फ़ायदा हुआ. उस टाइम पर सेलर्स तारों को देखकर पता लगाते थे कि वो नॉर्थ या साउथ से कितनी दूर है. लेकिन वो ये नहीं बता सकते थे कि वो ईस्ट में ट्रेवल कर रहे है या वेस्ट में.
ह्यूजेंस ने पहला एक्यूरेट पैंडूलम क्लॉक इन्वेंट करके इस प्रॉब्लम को दूर कर दिया था. सेलर्स हॉलैंड के टाइम के अनुसार अपनी क्लॉक सेट करते थे. वो सन की पोजीशन से अपनी लोकेशन के टाइम का पता लगाया करते थे. वो टाइम डिफ़रेंस कैलकुलेट करके ये पता लगा सकते थे कि वो ईस्ट में कितनी दूर ट्रेवल कर चुके है.
ह्यूजेंस की वजह से सेलर्स के लिए ट्रेवल करना और भी ईज़ी हो गया था और वो डच रिपब्लिक के लिए गोल्ड और स्पाइसेज़ (अलग-अलग तरह के मसाले) लेकर आया करते थे. लेकिन आम जनता के लिए इन सेलर्स की कहानियाँ कहीं ज्यादा वैल्यूएबल थी. वो उन्हें अजीब जानवरों और दूर-दूर तक फैले पहाड़ों के बारे में बताया करते थे. कुछ इससे भी आगे जाकर अपने मन से ड्रैगन और समुद्री राक्षसों की कहानियाँ गढ़ लेते थे.
ये कहानी पब्लिक को संतुष्ट करती है लेकिन ह्यूजेंस इससे भी आगे सोचने के लिए इंस्पायर हुए. वो ये जानने के लिए क्यूरियस थे कि आउटर स्पेस में लाइफ है या नहीं. उन्होंने डाक्यूमेंट्स भी लिखे थे कि एलिएंस कैसे दिख सकते है.
आज हमारे पास 2 एड्वेंचर शिप्स है जो कॉसमॉस तक ट्रेवल कर चुके है. इनमें कोई क्रू मौजूद नहीं है लेकिन ये इमेजेस के ज़रिए हमें कहानियाँ भेजते है. इन इमेजेस को " voyager " कैप्सूल कहा जाता है. voyager 1 और voyager 2, 1977 में हमारे सोलर सिस्टम और स्पेस को ज़्यादा स्टडी करने के लिए लॉन्च किए गए. ये आज भी काम कर रहे हैं.
Voyager प्रोग्राम की पहली ग्रेट स्टोरी जुपिटर के मून के बारे में थी. 1610 में गैलिलियो गैलिली (Galileo Galilei) ने जुपिटर के 4 मून को observe किया था. इन्हें गैलिलियन मून के नाम से जाना गया. ये सारे के सारे इतने बड़े थे जितने कि प्लेनेट Mercury. ये सभी अलग-अलग और बेहद एक्साईटिंग थे.
यूरोपा एक रॉकी मून है जिसके सर्फेस पर लाइन्स का एक बड़ा जाल बिछा हुआ है. ये शायद दरारें, माउंटेन range या फिर शायद नदियाँ हो सकते है. गेनीमेड और कैलिस्टो ज्यादा रेगुलर लगते है. इनमें यूरोपा से कम चट्टानें और ज्यादा बर्फ़ है. इन मून्स के कोर के पास रेडियोएक्टिव मटेरियल है. साइंटिस्ट्स मानते है कि इनके सेंटर से निकलने वाली गर्मी कैलिस्टो में अंडरग्राउंड समुद्र बना सकती है.
लेकिन सबसे आकर्षक गैलीलियन मून है 'लो'. इसका सर्फेस कलरफुल है जो ब्लैक, रेड, ऑरेंज और येलो कलर के पैटर्न से बना है. इसकी ज़मीन एकदम स्मूद है. ऐसा लगता है जैसे लो आज तक कभी किसी कॉमेट के द्वारा हिट नहीं हुआ है. ये साइंटिस्ट्स के लिए तब तक हैरानी की बात थी जब तक कि रिसर्चर ने लो के फोटो को ज़ूम करके नहीं देखा था. लिंडा मोराबिटो ने लो के सर्फेस से एक चमकीली लौ उठते हुए देखी. ये पहला वोलकेनो था जो अर्थ के बाहर पाया गया और जब ये फटता है तो पुराने वाले सर्फेस की कमियों को मिटाता हुआ एक नया सर्फेस क्रिएट होता है.
लो के वोलकेनो अर्थ की तरह नहीं होते है. इसका लावा सल्फर से बना है जो 115 डिग्री सेल्सियस पर ही पिघल जाता है. सल्फर का कलर इस बात पर डिपेंड करता है कि ये कितना गर्म है और कितनी जल्दी ठंडा होगा. वोलकेनो के पास का एरिया ब्लैक होता है. जैसे-जैसे सल्फर आगे बढ़ता जाता है, ये पहले रेड होता है और फिर ऑरेंज हो जाता है. जो हिस्से ठंडे हो जाते है वो धीरे-धीरे येलो में बदल जाते है जो ज्यादातर लो का सर्फेस बनाते है.
The Lives of Stars
कॉसमॉस में हर चीज़ atom से बनी है. ये atom इतने छोटे है कि 100 मिलियन मिलकर मुश्किल से आपकी ऊँगली की नोक को कवर कर पाएंगे. इसके बावजूद ये छोटे atom ज़्यादातर ख़ाली होते है. इनका ज़्यादातर मास एक छोटे से nucleus में रहता है जो इनके सेंटर में होता है. हर atom और छोटे पार्ट्स में थोड़ा जा सकता है जैसे प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन प्रोटॉन और न्यूट्रॉन nucleus में एक-दूसरे से टाईटली जुड़े रहते है. इलेक्ट्रॉन्स atom को चारों तरफ से एक बड़े बादल की तरह कवर करके रखता है.
साइंटिस्ट्स ने ये डिस्कवर किया कि प्रोटॉन को और थोड़ा जा सकता है. प्रोटॉन को दूसरे प्रोटॉन से टकराने पर छोटे पार्टिकल्स पैदा होते है जिन्हें quarks कहा जाता है. शायद quarks भी और छोटे पीसेज में थोड़ा जा सकता है. atom साइंस की ग्रेटेस्ट मिस्ट्रीज़ में से एक है. एक छोटा से atom में भी उतने ही रहस्य छुपे हो सकते हैं जितने की इस विशाल ब्रह्मांड में हैं. अब तक इंसान को 118 टाइप के अलग-अलग atom की जानकारी है. उनके बीच जो फ़र्क है वो nucleus में मौजूद प्रोटॉन के नंबर पर डिपेंड करता है. हाइड्रोजन में 1 प्रोटॉन होता है, ऑक्सीजन में 8, आयरन में 26 और इसी तरह से अलग-अलग मैटर में ये नंबर अलग-अलग होता है. इन्हें elements कहा जाता है. हमें अब तक 92 elements की जानकरी है जो नेचर में मौजूद है. बाकि के लैब में प्रोड्यूस किए गए जो तुरंत ही टूटकर बिखर गए.
अर्थ का सर्फेस मेनली सिलिकॉन, आयरन और एल्मुनियम से मिलकर बना है. हवा में ज़्यादातर नाईट्रोजन और ऑक्सीजन है. इसके बावजूद कॉसमॉस में 99% मैटर हाइड्रोजन और हीलियम है. ये दो सबसे सिंपल एलिमेंट है और एक के अंदर 1 प्रोटॉन है और दूसरे में 2. तो बाकि के elements कैसे क्रिएट हुए?
असल में हुआ ये कि एलेमेंट्स के अंदर एक तरह का ईवोल्यूशन आया. अगर आप दो nuclei को पास में रखोगे तो वो कम्बाइन होकर एक नया एलिमेंट बना लेंगे. हालाँकि ये प्रोसेस इतना ईज़ी नहीं है. इसमें कई मिलियन डिग्री सेल्सियस की रेंज में हाई टेम्प्रेचर चाहिए.
कॉसमॉस में ऐसी बहुत कम जगहें है जहाँ ऐसी कंडीशन देखी जा सकती है. उन जगहों को स्टार्स कहते है और अर्थ का सबसे क्लोज़ स्टार सन है. इसके सर्फेस का टेम्प्रेचर करीब 6000 °C है जो हमारी लैब्स जेनरेट कर सकती है. लेकिन कोर में सन का टेम्प्रेचर 40 मिलियन डिग्री तक पहुँच जाता है.
सन हाइड्रोजन और हीलियम का एक बड़ा गोला है. इसकी लाईट सेंटर से जेनरेट होती है. हाइड्रोजन atom बड़े ज़ोरदार तरीके से आपस में टकराते है. उनके nuclei मिलकर हीलियम बनाते है. लेकिन इस प्रोसेस के दौरान हाइड्रोजन atom अपनी थोड़ी एनर्जी खो देता है. ये एनर्जी स्पेस में ट्रेवल करती है और हमें गर्मी और लाईट देती है.
गैस के बादल जब स्पेस में तैरते है तो उनसे स्टार्स बनते है. गैस पार्टिकल्स की ग्रेविटी उन्हें एक-दूसरे के पास ले आती है. फिर धीरे-धीरे हाइड्रोजन atom एक-दूसरे से टकराने लगते है. स्टार्स बेसिकली bomb है जो नोन-स्टॉप फटते रहते है. सन 5 बिलियन सालों से इसी तरह से रिएक्ट करता आ रहा है. ये हर सेकंड में 4 सौ मिलियन टन हाइड्रोजन कंज्यूम करता है.
सन के पास लिमिटेड अमाउंट में हाइड्रोजन गैस है. आज से 6 बिलियन साल बाद इसकी सारी हाइड्रोजन हीलियम में बदल जाएगी लेकिन रिएक्शन तब भी नहीं रुकेगा. सन की ग्रेविटी तब भी इतनी होगी कि ये हीलियम को फ्यूज़ करती रहेगी. ये रिएक्शन कार्बन और ऑक्सीजन प्रोड्यूस करना शुरू कर देंगे.
लेकिन हीलियम फ्यूजन हाइड्रोजन जितनी गर्मी नहीं प्रोवाइड कर पाएगा. सन का सर्फेस ठंडा और लाल होने लगेगा. ये धीरे-धीरे बढ़ने लगेगा और अंत में सन इतना बड़ा हो जाएगा कि अर्थ को निगल लेगा. उम्मीद है तब तक इंसान अपने रहने के लिए कोई और घर ढूंढ लेगा.
धीरे-धीरे एक दिन सूरज भी अपनी सारी हीलियम यूज़ कर लेगा और फिर वो कभी nuclear रिएक्शन नहीं कर पाएगा और गिरने लगेगा. शायद कुछ कार्बन और ऑक्सीजन आपस में मिलकर कुछ और elements प्रोड्यूस करे तो भी वो इतनी एनर्जी जेनरेट नहीं कर पाएँगे कि एक स्टार को बनाए रख सकें.
अंत में एक दिन सूरज व्हाईट dwarf बन जाएगा यानी एक गर्म, डेंस बॉल जो अपनी गर्मी की वजह से चमकेगा. फ़िर एक दिन ये गर्मी भी ठंडे और ख़ाली ब्रह्मांड में खो जाएगी, तब सूरज अपनी लाईट भी खो देगा और एक ब्लैक dwarf बन जाएगा.
एक स्टार का साइज़ तय करता है कि वो कितनी देर तक फ्यूजन करता रहेगा. जो स्टार सूरज से ज्यादा बड़े है मरने से पहले सिलिकॉन और आयरन जैसे elements फ्यूज़ कर सकते है और फिर एक दिन ये elements प्लेनेट्स और दूसरे स्पेस ऑब्जेक्ट्स बन जाते है. हम अर्थ के नैचुरल elements से ईवोल्व हुए है. एक तरह से कहें तो इंसान स्टार्स की राख से पैदा हुआ है.
The Persistence of Memory
ब्रह्मांड में किसी जगह, अर्थ के बाहर कई तरह की लाइफ मौजूद हो सकती है. हो सकता है कि ये एडवांस्ड टेक्नोलॉजिकल सिविलाईजेशन या सिर्फ माइक्रोऑर्गेनिज्म की कॉलोनी हो. हम एक स्पीशीज़ की इंटेलिजेंस इस चीज़ से measure करते है कि उनके पास कितनी information है.
information को measure करने के लिए bits का यूज़ होता है. 8 मिलियन बिट्स 1 मेगाबाईट बनाते है. आप इस टर्म के बारे में जानते होंगे क्योंकि ये फ़ोन और कंप्यूटर मेमोरी के लिए भी यूज़ की जाती है. लेकिन information का सबसे स्टोर हमारा डीएनए है. इसमें किसी स्पीशीज़ के पैदा होने और सर्वाइव करने के लिए इंस्ट्रक्शन होते है. एक वायरस में 10,000 बिट्स की information होती है. ये सिर्फ इतना जानता है कि दूसरे सेल्स को कैसे इन्फेक्ट किया जाए और खुद को आगे कैसे फैलाया जाए. जबकि बैक्टीरीया इससे कहीं ज्यादा complicated होते है. उनके डीएनए में करीब 1 मिलियन बिट्स की information होती है जो 100 पेज की एक बुक को भरने के लिए काफी है. इंसान के डीएनए में 5 बिलियन बिट्स होते है, यानि 625 मेगाबाईट्स. इसमें हमारे सारे बायोलॉजिकल फंक्शन के लिए इंस्ट्रक्शन पाए जाते है. जैसे example के लिए, खाना डाइजेस्ट करना एक कॉम्प्लेक्स बायोकेमिकल प्रोसेस है. आप ये सारे ऑपरेशन कांशसली परफॉर्म कर ही नहीं सकते और अगर आपने कर भी लिया तो आपके पास फिर किसी और चीज़ के लिए टाइम नहीं बचेगा. आपका डीएनए आपके पेट को वो सब कुछ बताता है जो उसे खाना पचाने के लिए करना चाहिए.
हालाँकि डीएनए नैचुरल फंक्शन परफॉर्म करने के लिए एकदम सही है पर ये बेहद धीरे-धीरे ईवोल्व होता है. नए इंस्ट्रक्शन्स सिर्फ ईवोल्यूशन के जरिए ही नज़र आते है. आपके ग्रेट-ग्रेट-ग्रैंडचिल्ड्रन के डीएनए में आपके डीएनए से ज्यादा फर्क नहीं होगा. तो स्पीशीज़ अपने एनवायरनमेंट में अचानक या तेज़ी से आए हुए बदलाव को कैसे अपना लेती है?
ज़्यादातर ऑर्गेनिज्म चेंज के प्रति सही तरीके से respond नहीं कर पाते. एक बैक्ट्रिया को अगर आप एक अनकम्फर्टेबल एनवायरनमेंट में देर तक रखोगे तो वो मर जाएगा. लेकिन इंसान अलग है. हमारे ब्रेन में information का दूसरा सोर्स है.
हमारे ब्रेन का बाहरी हिस्सा cerebral cortex कहलाता है. यही वो चीज़ है जो इंसान को जानवरों से अलग करती है. ब्रेन का ये पार्ट वो चीज़े प्रोसेस करता है जो आपके जींस नहीं कर सकते. ये आईडियाज़ जेनरेट करता है, मैथ्स के प्रॉब्लम सोल्व कर सकता है और म्यूजिक क्रिएट कर सकता है. ह्यूमन ब्रेन 100 ट्रिलियन तक information होल्ड कर सकता है. यानि ये 20 मिलियन बुक्स के बराबर हुआ. यानि दुनिया की सबसे बड़ी लाईब्रेरी से भी ज्यादा information आपके पास है. लेकिन फिर भी किसी पॉइंट पर आकर इंसान ने इतनी नई information क्रिएट की है जितना हम अपने ब्रेन में स्टोर नहीं कर सकते. यही वजह है कि बुक्स इन्वेंट हुई है.
लेकिन आज की तारीख में ह्यूमन information ने बुक्स को पीछे छोड़ दिया है. अब हमारे पास इंटरनेट और कंप्यूटर है. हर सेकंड कई बिलियन बिट्स पूरी दुनिया में ट्रांसमिट होते रहते है. ट्रांसमिट किए हुए डेटा का कोई स्पेशिफिक डायरेक्शन नहीं होता है और ये स्पेस में भी चला जाता है. उन एलियंस के लिए जो रेडियो वेव्स को देख सकते है, हम मिल्की वे के सबसे ब्राईट ऑब्जेक्ट होंगे.
लेकिन हमारे प्लेनेट के ज़्यादातर ट्रांसमिशन बेकार के होंगे. हम एक साथ इतने सारे सिग्नल भेजते जाते है कि कुछ भी पहचान पाना मुश्किल होगा. इमेजिन करो कि एलियंस को कोई information का सोर्स मिला जैसे कि कोई वीडियो. अर्थ के रोटेशन की वजह से उन्हें इसे देखने के लिए एक बड़े सर्कल में ट्रेवल करना पड़ेगा. इस प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए, voyager स्पेसक्राफ्ट एक कॉपर डिस्क कैरी करता है जो गोल्ड प्लेटिंग से प्रोटेक्टेड होता है. इस डिस्क में हमारी बुक्स, ब्रेन और डीएनए की information होती है. एलियंस हमारी जुबान नहीं बोल सकते पर इस डिस्क के अंदर 60 ह्यूमन लेंगुएजेस में ग्रीटिंग्स है.
Voyager में इंसान की पिक्चर भी है जिसमें वो एक-दूसरे के साथ इंटरएक्ट करते हुए और कोई ना कोई क्राफ्ट प्रेक्टिस करते हुए नज़र आ रहे है. इसमें अलग-अलग कल्चर से 1.5 घंटे का बेस्ट म्यूजिक भी स्टोर्ड है. लेकिन सबसे इम्पोर्टेन्ट information है एक इंसान के थॉट्स और ईमोशंस.
साइंटिस्ट्स को एक volunteer मिला तो उन्होंने उसके दिल की धड़कन और ब्रेन सिग्नल को एक घंटे तक रिकॉर्ड किया. ये शायद ज्यादातर स्पीशीज़ को सुनने में इलेक्ट्रिकल बकवास लगे पर शायद कोई एलियन जो हमसे ज्यादा इंटेलिजेंट हो, उसे शायद कभी ये चीजें मिल जाएँ और शायद तब वो जून 1977 से इंसान के एक्सपीरिएंस को एप्रिशिएट कर पाए.
Who Speaks for Earth?
इंसान आज अपनी हिस्ट्री के एक क्रिटिकल स्टेज पर है. हमारा पहला बड़ा कदम था पेड़ से उतरना और ज़मीन का मास्टर बनना. लेकिन अब हम इस ज़मीन को छोड़ने के काबिल बन चुके है. हमारे पास ऐसी टेक्नोलॉजी है कि हम आउटर स्पेस के बेस में रह सकते है.
कई लोग डरते है कि कॉसमॉस के जो अन्य प्राणी है वो इंसान के लिए रिस्क बन सकते है. फिर भी ऐसा लगता है जैसे हम खुद के लिए ही सबसे बड़ा खतरा है. जंग और देशों के बीच की लड़ाई हमारी दुनिया को तहस-नहस कर रहे है. जो नहीं लड़ रहे है वो अपने लिए हथियार बनाने में बिज़ी है.
Nuclear bomb हमारे लिए सबसे खतरनाक हथियार है. वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान ऐसी अफवाह फैली हुई थी कि जर्मन्स के हाथ ऐसा ही एक खतरनाक हथियार लग चुका है इसलिए अमेरिकन्स भी अपने दुश्मनों से पहले ऐसा कोई हथियार बनाने में जुट गए. उसके बाद रशिया, फ़्रांस और ब्रिटेन भी इस रेस में शामिल हो गया. आज नॉर्थ कोरिया जैसे देश के पास भी nuclear हथियार है.
वर्ल्ड वॉर 2 से पहले हमारे सबसे पावरफुल bomb को ब्लॉकबस्टर कहा जाता था. इन्हें एक एक्सप्लोसिव यूज़ करके बनाया जाता था जिसे टीएनटी कहते थे. वर्ल्ड वॉर 2 में दो मिलियन टन या दो मेगाटन टीएनटी इस्तेमाल की गई. आज एक सिंगल nuclear हथियार में अकेले दो मेगाटन टीएनटी के बराबर विनाश करने की ताकत है.
इमेजिन कीजिए कि ये अकेला हथियार वर्ल्ड वॉर 2 में कितनी तबाही मचा सकता था. अब जरा दुनिया भर के उन 15,000 हथियारों के बारे में सोचिए जो अपने टारगेट पर निशाना साधे हुए है. यूएस और रशिया हमेशा अपने-अपने मिसाइल्स फायर करने को तैयार रहते है. उन लोकेशंस को ये पलक झपकते ही उड़ा सकते है.
यहाँ तक कि अगर हम अर्थ पर सबको एक ब्लॉकबस्टर दे दे तो भी ये nuclear पावर से मैच नहीं कर पाएगा. लेकिन ये आम bomb से कहीं ज्यादा घातक साबित होंगे. nuclear वेपन के ब्लास्ट का फ़ोर्स कई बिल्डिंग्स को धराशायी कर सकता है. ये एक्सप्लोजन के पास आने वाली किसी भी चीज़ को जलाकर राख कर सकता है और इससे निकलने वाली रेडिएशन कई सालों तक हवा में बनी रहेगी.
यूएस ने एक बार मार्शल आईलैंड पर एक nuclear टेस्ट किया था. ये एक्सप्लोजन उससे कहीं ज्यादा पावरफुल था जितना उन्होंने सोचा था. उसका रेडिएशन सेफ ज़ोन से बाहर निकल गया था और इसने कई मासूम लोगों को अपना शिकार बना लिया था. हर तीन में से दो बच्चे और हर तीन में से एक बड़े पर इस रेडिएशन का असर पड़ा था. ये लोग जिंदगी भर कई तरह की मेंटल और फिजिकल डिसएबिलिटीज़ से जूझते रहे.
हिरोशिमा पर गिरने वाला पहला एटॉमिक bomb 0.013 मेगाटन की पावर का था. मार्शल आईलैंड का टेस्ट 15 मेगाटन का था. अर्थ पर जितने भी nuclear हथियार है उनकी पावर 1 मिलियन हिरोशिमा bomb के बराबर है. हिरोशिमा के डेथ काउंट की कैलकुलेशन दिखाती है कि इंसान 100 बिलियन लोगों को पलक झपकते ही मार सकता है और अर्थ पर मुश्किल से 8 बिलियन लोग है.
दुनिया में इतने सारे हथियार होने के बावजूद कई देशों को अभी भी इनकी भूख है. 20th सेंचुरी के अंत तक इंटरनेशनल आर्म्स ट्रेड (इंटरनेशनल हथियारों का व्यापार) $20 बिलियन तक पहुँच चुका था. हथियार बनाने वाले किसी भी और इंडस्ट्री के मुकाबले 30% - 50% ज्यादा प्रॉफिट कमाते है.
कई देश अपने हथियार जमा करने की जरूरत को जायज़ बताते है. उनका ईशारा विदेशी देशों की नुक्सान पहुँचाने वाली पॉलिटिकल, सोशल और धार्मिक वैल्यूज़ की तरफ होता है. लेकिन क्या ये तर्क वाकई में स्वीकार करने के लायक है?
मान लो हमें कोई एलियन स्पीशीज़ मिल गई. कौन समझा सकता है कि हम इस पूरे प्लेनेट को तहस-नहस करने जितना हथियार क्यों इकट्ठा कर रहे है? जरा सोचिए एक छोटे से देश जितने एरिया को सिर्फ मिसाइल्स स्टोर करने के लिए डेडीकेट किया गया है. क्या हम खुद को वाकई में अर्थ की रक्षा करने वाले कह सकते है? अगर किसी बाहरी शख्स की नज़र से देखे तो शायद हम इंसान उसे एक इंटेलीजेंट स्पीशीज़ लगेंगे ही नहीं.
Conclusion
सबसे पहले तो, आपने अर्थ के बारे में और कॉसमॉस में इसकी क्या जगह है ये जाना. एराटोस्थनीज दुनिया के पहले ग्रेट एस्ट्रोनॉमर थे जिन्होंने परछाई के ज़रिए अर्थ की साइज़ एकदम एक्यूरेट कैलकुलेट की थी. लेकिन कॉसमॉस में अर्थ बहुत छोटी सी जगह घेरती है. हम मिल्की वे गैलेक्सी के बिल्कुल कोने में रहते है. तो भी इतने बड़े कॉसमॉस के खालीपन के मुकाबले हमारी गैलेक्सी बहुत छोटी है.
दूसरी चीज़ जो आपने सीखी वो है एवोल्यूशन के बारे में. कुछ प्लांट्स और एनिमल्स आर्टिफिशियल सिलेक्शन के जरिए अपने करंट फॉर्म में पहुंचे है. लेकिन इंसानों से पहले एवोल्यूशन सिर्फ नैचुरल सिलेक्शन के जरिए होता था. लाइफ खुद 4 बिलियन साल पहले कुछ कॉम्प्लेक्स रिएक्शन के ज़रिए evolve हुई है.
थर्ड, आपने कॉमेट के बारे में जाना. ये बहुत बड़े साइज़ के बर्फ़ के बॉल होते है जो स्टार्स के चारों तरफ घूमते है. अब क्योंकि कॉमेट का रास्ता फिक्स नहीं होता तो कई बार ये प्लेनेट्स से टकरा जाते है. इनकी वजह से ही मून में गड्ढे पड़े है. ज़्यादातर कॉमेट जो अर्थ से टकराते है वो इसके एटमोस्फीयर में ही जल जाते है.
फोर्थ, आपने जाना कि अर्ली डच रिपब्लिक ने मॉडर्न साइंस को किस तरह से शेप किया है. क्रिश्चियन ह्यूजेंस (Christian Huygens) ने अपनी डिस्कवरीज़ से sailing और एस्ट्रोनॉमी को प्रमोट किया. लोग ट्रेवल करने वाले लोगों की कहानियों से बहुत आकर्षित होते थे और आज voyager स्पेसक्राफ्ट सेम यही काम कर रहा है. वो ज्यूपिटर के मून से लेकर उससे भी आगे पहुँच चुका है.
फिफ्थ, आपने elements और स्टार की लाइफ साइकल के बारे में जाना. सूरज इसलिए गर्म और चमकीला है क्योंकि ये हाइड्रोज़न और हीलियम के फ्यूजन से एक्सप्लोजन क्रिएट करता है. स्टार्स का जब हाइड्रोजन खत्म हो जाता है तो वो गिर जाते है और मर जाते है. उनका फाईनल फ्यूजन रिएक्शन कार्बन, ऑक्सीजन और आयरन जैसे. दूसरे elements प्रोड्यूस करता है.
सिक्स्थ, हमारे पास जो information है आपने उसके बारे में समझा. आपका डीएनए आपके ज़िन्दा रहने और रीप्रोडक्शन के लिए इंस्ट्रक्शन कैरी करता है. जो सिचुएशन डीएनए के लिए काफी कॉम्प्लेक्स होती है, उन्हें ब्रेन हैंडल कर लेता है. जब इंसान ब्रेन के लिए बहुत ज्यादा information बना देता है तो उन्हें बुक्स और कंप्यूटर में स्टोर किया जाता है. कुछ information स्पेस में voyager स्पेसक्राफ्ट में भेजी गई है.
सेवेंथ, आपने समझा कि कैसे nuclear वॉर हमारे फ्यूचर के लिए खतरा है. अब तक आपने इंसान की और एक्सप्लोर करने की इच्छा के बारे में जाना, लेकिन अब ऐसा लगता है कि हम जंग करने में ज्यादा इंट्रेस्टेड है. अकेले यूएस के पास इतना nuclear हथियार है जो धरती पर जीवन का ख़ात्मा कर सकता है. हम कम हथियार इकट्ठा करके और उस पैसे को शांति कायम करने के उपायों में लगाकर अपना फ्यूचर बचा सकते है.
इंसान में हमेशा से ही चीज़ों के बारे में जानने की इच्छा रही है और प्राचीन सिविलाईजेशन से ही ये कॉसमॉस हमारे फेवरेट सब्जेक्ट में से एक रहा है. मॉडर्न साइंस ने यूनिवर्स को समझने के लिए कई बड़े और बेमिसाल कदम उठाए है. इस समरी के ज़रिए आप कॉसमॉस के अनगिनत और अनसुलझे रहस्य से पर्दा उठाने के और करीब पहुँच गए हैं.
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फाइनली अगर आप इस समरी के एन्ड तक पहुंच गए है तो Congratulation बहुत ही कम लोग होते है जो नॉलेज के ऊपर टाइम इन्वेस्ट करते है वर्ना आप कही और भी तो टाइम वेस्ट कर सकते थे.
Anyways, हमने ये मैसेज इसीलिए बनाया है ताकि हम Xpert Reader का Goal बता सके की क्यों हमने Xpert Reader स्टार्ट की है?
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